रिपोर्ट - मुरादाबाद/उत्तर प्रदेश से तहसील प्रभारी मुरादाबाद - सुभाष चन्द्र दीक्षित।
कुछ वर्षो पहले जब बसपा की सरकार सूबे मे सत्तासीन थी तब असहाय, गरीबो व कुछ विशेष वर्गो की दयनीय स्थिति को देखते हूए तत्कालीन सरकार ने काशीराम आवास योजना के तहत उनको आवास उपलब्ध कराये थे। वैसे तो इस पूरे प्रकरण मे कई मोड़ आये पर अन्ततः जिन लोगो को यह आवास मिले है तथा उनमे रह रहे है क्या यह कहा जा सकता है कि उनका जीवन स्तर कुछ सुधर गया है अथवा वो अब दीन हीन स्थिति मे नही है।
यह सरकारो का आना और जाना तो लगा ही रहा है और हमेशा लगा रहेगा परन्तु दुखद यह है कि जब किसी भी पार्टी की सरकार सत्तासीन होती है तो बड़े बड़े वादे व आश्वासन जनता को मिलते है पर कंुछ समय बाद सब समाप्त। इसी क्रम मे आज हम आपको दिखा रहे है मुरादाबाद स्थित काशीराम योजना के तहत बने कुछ उन मकानो के हालात तो जर्जर स्थिति मे आ चुके है जबकि अभी अधिक समय नही हुआ है। सफाई व्यवस्था की बात करे तो जगह जगह कूड़े के ढेर पड़े दिखायी देना आम बात हो गयी है।घास नालो के इर्द गिर्द इस प्रकार उग आयी है कि ये भी पता नही लग पाता है कि कहॉ से नाले की शुरूआत हो रही है। काशीराम नगर के एच 198 से एच 215 तक की स्थिति वीडीयो मे साफ दिखायी दे रही है। इस छोटी सी वीडीयो से ही समझ सकते है कि कालौनी के हालात क्या होंगे। खाली पड़े स्थानो की तो परवाह किस बाकयदा यहॉ के निवासियो के लिये जो पार्क एक अच्छी खासी लागत लगाकर सरकारी खर्चे पर विकसित किये गये थे आज उनकी देखभाल करने वाला भी कोई नही है। हालात इतने बदतर है कि घास उग कर लम्बी हो चली है और बरसात का मौसम आने को है इसमे सॉप व बिच्छू जैसे खतरनाक जीव भी हो सकते है जो यहॉ से गुजरने वाले किसी राहगीर अथवा खेलने आने वाले बच्चो के जीवन के लिये घातक भी साबित हो सकते है। यह सब खुले मे है पर किसी भी प्रशासनिक अधिकारी की नजर आज तक इस पर नही गयी है।
काशीराम योजना के अन्तर्गत मिले मकानो मे रहने वालो का कहना है कि कई बार इस बारे मे एमडीए की उच्च अधिकारियों को लिखा जा चुका है तथा विस्तार से बताया भी गया है, परन्तु आज 3 साल बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस ही है। स्थानीय निवासियो ने बताया कि कई मुख्य समाचार पत्र भी इस मुददे को कई बार अपने अपने माध्यम से उठा चुके है, परन्तु मुख्य समाचार पत्रो मे छपी खबर का भी कोई प्रभाव किसी भी प्रशासनिक अधिकारी अथवा विभागाध्यक्ष पर देखने को नही मिला।
यदि स्थिति यही रही तो शायद ही विकसित भारत जो वाकई मे विकसित हो कि कल्पना करना व्यर्थ ही है क्योकि हमारी सरकारे नयी योजनाये बनाती है उन्हे क्रियान्वित भी करती है कई बार रोक टोक होती है और कुछ योजनाये या तो रोक दी जाती है अथवा उनका औचित्य ही समाप्त हो जाता है परन्तु जो योजनाये पूरी हो जाती है जिनके तहत आवास योजना, पुलो का निर्माण, सड़को का निर्माण सार्वजनिक महत्व की योजनाये आती है पूर्ण किये जाने के बाद सरकारे अपना रूख दूसरी और कर लेती है और इनका प्रयोग करने वालो को दी जाने वाली अन्य मूलभूत सुविधाओ के बिना ही जीवन यापन को मजबूर होना पड़ता है।