सम्पादक की कलम से........
(संजय कुमार शर्मा, मुख्य सम्पादक, न्यूज इन्डिया 17)
देश की वर्तमान व उससे पहले की सरकारे भी हमेशा मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग के उत्थान व आर्थिक समृद्वि के लिये प्रयास करती रही है। अनेको योजनाये भी लागू की गयी, अनेको प्रकार से लाभान्वित करने का दावा भी किया गया, परन्तु क्या वाकई इन वर्गो का उत्थान हो सका है, आर्थिक रूप से समृद्व हो सके है ये वर्ग। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर शायद हॉ भी हो और शायद नही भी। सच तो यह है कि सरकारो ने जो भी प्रयास किये केवल इन वर्गो की कुछ प्रतिशत आबादी ही उसका लाभ ले पाने मे सक्षम रही परन्तु इन्ही वर्गो मे एक बड़ा प्रतिशत ऐसा भी रहा जो चाहकर भी सरकार की योजनाओं का लाभ ले पाने मे सक्षम नही हो सका है।
मै इस लेख के माध्यम से किसी पर कोई कटाक्ष अथवा दोषारोपण नही कर रहा हूॅ मेरा प्रयास केवल इतना है कि सरकारे इस तथ्य पर गौर करे कि क्या वाकई मध्यम एवं निम्न मध्यम वर्ग के लिये लागू की जाने वाली योजनाओं का लाभ इस वर्ग को शत प्रतिशत मिल पा रहा है और यदि नही तो क्या कारण रहा। मुख्यतः मध्यम एवं निम्न मध्यम वर्ग नौकरी पेशा है और वर्तमान मे इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा निजी संस्थानो, फैक्ट्रियो आदि मे कार्यरत है। मुख्य मुददा यही है कि सरकारे चाहे वह केन्द्र मे हो या किसी भी प्रदेश मे अपने कर्मचारियो को तो हमेशा अच्छा वेतन देती आयी है साथ ही वेतन आयोग को लागू कर अच्छी खासी वृद्वि भी कर दी जाती है, परन्तु इसके उलट निजी संस्थानो के लिये मजदूरी एवं वेतन के मानक तो तय किये जाते है परन्तु उन मानको के अनुसार मजदूरी अथवा वेतन कर्मचारियों को दिया भी जा रहा है अथवा नही यह जानने का प्रयास सरकारें नही करती है और यदि यह प्रयास किये भी जाते है तो केवल खानापूर्ति तक ही सीमित रह जाते है। यदि कुछ प्रतिष्ठित एवं बड़े निजी संस्थानो को छोड़ दिया जाये तो कमोबेश कर्मचारी का शोषण सभी संस्थानो मे किया जा रहा है।
सरकारे अपने खर्च एवं अपने कर्मचारियो को वेतन वृद्वि व अन्य सुविधाये देने के लिये कर की दरे, ई्रधन के मूल्य, सार्वजानिक परिवहन का किराया तो समय समय पर बढाते है और साथ ही दावा करते है अधिक सुविधाये देने का परन्तु क्या यह वर्ग जो हमेशा से उपेक्षा का पात्र रहा है वाकई उन सुविधाओ का उपयोग भी कर पाता है यह चिन्तन ही नही चिन्ता का विषय भी है। मान लीजिये सरकार ने सार्वजनिक परिवहन के साधनो के किराये मे बढोत्तरी की और कुछ सुविधाये भी प्रदान की, परन्तु क्या मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग जो मामूली से वेतन पर निर्भर है और पहले ही अभाव ग्रस्त जीवन जी रहा है वह इन सुविधाओ का लाभ ले पायेगा, नही इन सुविधाओ का लाभ तो केवल वही वर्ग ले पायेगा जो पहले से ही समृद्व है। यदि सरकार ईंधन के दाम बढाती है तो उसका सर्वाधिक भार भी इसी वर्ग को झेलना पड़ता है क्योकि खाद्यान्न की ढुलाई महंगी होने पर बाजार मे उसके दाम स्वतः ही बढ जाते है और दो वक्त की रोटी तो उस गरीब को भी चाहिये ही। सरकार कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने का दावा करती है परन्तु क्या मध्यम अथवा निम्न मध्यम वर्ग इसका लाभ ले पाने मे सक्षम है यह कोई जानने का प्रयास नही करता क्योकि प्रत्येक बैंक ने अपने अपने मानक तय किये हुए है। इन मानको के अनुसार तो कुछ लोगो को वेतन भी नही मिल रहा होता है और वे सरकारी अथवा निजी दोनो ही बैंको से ऋण लेकर भी कोई कार्य नही कर पाते।
आज यह चिन्तन का विषय है परन्तु आने वाले समय मे चिन्ता का विषय अवश्य बन जायेगा क्योंकि यही वह वर्ग है जो बड़े बड़े उद्योगो को चलाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा यही वर्ग है जो सरकारो को चुनने मे अहम भूमिका भी अदा करता है। यदि आज भी इनकी दीन हीन होती हालत के बारे मे नही सोचा गया तो वह दिन दूर नही जब दो वक्त की रोटी जुटाने की जुगत मे लगा यह वर्ग शोचनीय हालत का शिकार होगा और सरकारो द्वारा दिये जा रहे आश्वासन भी उसका मन नही जीत सकेगे।