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सूरत जीतने के बाद केजरीवाल का कॉन्फिडेंस हाई, गुजरात में AAP को कितना मौका?

"हम 27 हैं वो 93 हैं लेकिन नंबर से कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारा एक-एक आदमी 10-10 पर भारी पड़ेगा।" आसमानी रंग की ढीली-ढाली शर्ट, गले में लटकता सर्जिकल मास्क और चेहरे पर मासूमियत वाली मुस्कान लिए केजरीवाल ने जब सूरत में ये कहां तो वहां खड़ी भीड़ उत्साहित हो गई। "आपको जनता ने विपक्ष की भूमिका दी है, उनको नानी याद दिला देना सदन के अंदर.." .तालियों की गड़गड़ाहट से माहौल उर्जावान हो जाता है। गुजरात में केजरीवाल ने एक बड़ा रोड शो किया। अस रोड शो के कई सियासी मायने निकाले जा  रहे हैं। अपने समर्थकों का अभिवादन करने केजरीवाल पहुंचें और धन्यवाद रैली की। केजरीवाल की नजर सूरत से आगे गुजरात के ग्रामीण इलाकों पर भी है। सूरत का कनेक्ट सौराष्ट्र और नार्थ गुजरात के कई इलाकों से है। इन इलाकों से आकर लोग बसते हैं और उन्हीं के बीच में केजरीवाल के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। सूरत वाली जीत से केजरीवाल का कॉन्फिडेंस बढ़ा है और उनकी निगाहें अब गुजरात के गांव की ओर टिकी है। जहां 28 फरवरी को 31 जिला पंचायत और 231 तालुका पंचायत और 81 नगर पालिकाओं की 8474 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं। सूरत के नतीजों के बाद आम आदमी पार्टी को लग रहा है कि नए विकल्प के तौर पर उन्हें गुजरात देख रहा है। निकाय चुनाव में भी सूरत का असर दिख सकता है। इसलिए प्रचार के आखिरी दिन केजरीवाल ने पूरी ताकत झोंक दी। 2100 उम्मीदवार आम आदमी पार्टी ने इन नगर पालिका , तालुका पंचायत चुनावों में खड़े किए हैं। 

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गुजरात में आप की एंट्री कुछ इस प्रकार रही

6 महानगर पालिकाओं में आप को कुल 17 % वोट शेयर मिला

सूरत में वोट शेयर 28 % रहा है

15 लाख से ज्यादा वोट सूरत में मिले हैं

बीजेपी ने 120 में से 93 सीटें जीती हैं

आप ने 27 सीटे जीती हैं

कांग्रेस को एक सीट भी नहीं नसीब हुई

आम आदमी पार्टी के लिए अच्छी बात ये रही है कि इसके 45 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे। 

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ग्रामीण क्षेत्रों सफलता हासिल करना बड़ी चुनौती

गुजरात में सूरत महानगर पालिका के चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिली सफलता के बाद पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को अगले साल होने वाले गुजरात विधानसभा के चुनाव में बड़ी संभावनाएं भी नजर आ रही हैं। दिल्ली में जीत की हैट्रिक लगाने वाली आम आदमी पार्टी बाकी राज्यों में अभी तक सफलता के कोई बड़े झंडे गाड़ने में कामयाबी हासिल नहीं कर पाई है। पूरी तरह शहरी आबादी वाला राज्य दिल्ली में तो फ्री बिजली-पानी के लोगों के मूलभूत मुद्दों ने केजरीवाल की चुनावी नैया पार लगा दी लेकिन ग्रामीण इलाकों में लोकलुभावन वादों के साथ ही जाति, क्षेत्रीय भावनाएं प्रमुख स्थान रखती हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी इन जगहों पर सफलता कैसे दर्ज करेगी ये एक बड़ा सवाल है। 
गुजरात के सूरत में आम आदमी पार्टी को मिली इस सफलता को केजरीवाल ये इशारा मान रहे हैं कि बीजेपी-कांग्रेस की सियासत में लोग एक नये विकल्प को तलाश रहे हैं और आम आदमी पार्टी ये विकल्प बनकर उभरने की चाह के साथ चुनावी लड़ाई के लिए कमर कस रही है। 


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