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बिजनौर भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। हिमालय की उपत्यका में स्थित बिजनौर को जहाँ एक ओर महाराजा दुष्यन्त,परमप्रतापी सम्राट भरत, परमसंत ऋषि कण्व और महात्मा विदुर की कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है, वहीं आर्य जगत के प्रकाश स्तम्भ स्वामी श्रद्धानन्द, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डॉ॰ आत्माराम, भारत के प्रथम इंजीनियर राजा ज्वालाप्रसाद आदि की जन्मभूमि होने का सौभाग्य भी प्राप्त है।
साहित्य के क्षेत्र में जनपद ने कई महत्त्वपूर्ण मानदंड स्थापित किए हैं। कालिदास का जन्म भले ही कहीं और हुआ होए किंतु उन्होंने इस जनपद में बहने वाली मालिनी नदी को अपने प्रसिद्ध नाटक श्अभिज्ञान शाकुन्तलम् का आधार बनाया। अकबर के नवरत्नों में अबुल फ़जल और फैज़ी का पालन.पोषण बास्टा के पास हुआ। उर्दू साहित्य में भी जनपद बिजनौर का गौरवशाली स्थान रहा है। क़ायम चाँदपुरी को मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी उस्ताद शायरों में शामिल किया है। नूर बिजनौरी जैसे विश्वप्रसिद्ध शायर इसी मिट्टी से पैदा हुए। महारनी विक्टोरिया के उस्ताद नवाब शाहमत अली भी मंडावर,बिजनौर के निवासी थे, जिन्होंने महारानी को फ़ारसी पढ़ाया। संपादकाचार्य पं0 रुद्रदत्त शर्मा, बिहारी सतसई की तुलनात्मक समीक्षा लिखने वाले पं0 पद्मसिंह शर्मा और हिंदी.ग़ज़लों के शहंशाह दुष्यंत कुमार, विख्यात क्रांतिकारी चौधरी शिवचरण सिंह त्यागी,पैजनियां भी बिजनौर की धरती की देन हैं। वर्तमान में महेन्द्र अश्क देश विदेश में उर्दू शायरी के लिए विख्यात हैं। धामपुर तहसील के अन्तर्गत ग्राम किवाड में पैदा हुए महेन्द्र अश्क आजकल नजीबाबाद में निवास कर रहे हैं।
बिजनौर जनपद के प्राचीन इतिहास को स्पष्ट करने के लिए प्रमाणों का अभाव है। बुद्धकालीन भारत में भी चीनी यात्री ह्वेनसांग ने छह महीने मतिपुरा ;मंडावर में व्यतीत किए। हर्षवर्धन के बाद राजपूत राजाओं ने इस पर अपना अधिकार किया। पृथ्वीराज और जयचंद की पराजय के बाद भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना हुई। उस समय यह क्षेत्र दिल्ली सल्तनत का एक हिस्सा रहा। कहा जाता है कि सुल्तान इल्तुतमिश स्वयं साम्राज्य.विरोधियों को दंडित करने के लिए यहाँ आया था। मंडावर में उसके द्वारा बनाई गई मस्ज़िद आज तक भी है। औरंगजेब के शासनकाल में जनपद पर अफ़गानों का अधिकार था। ये अफ़गानिस्तान के श्रोहश् कस्बे से संबंधित थे ये अफ़गान रोहेले कहलाए और उनका शासित क्षेत्र रुहेलखंड कहलाया। नजीबुद्दौला प्रसिद्ध रोहेला शासक था, बाद में इसके आसपास की आबादी इसी शासक के नाम पर नजीबाबाद कहलाई। इस क्षेत्र में कई राजपूत रियासतें भी रही जिसमें हल्दौर, राजा का ताजपुर, शेरकोट आदि प्रमुख थी वहीं साहनपुर जाट रियासत थी। रोहेलों से यह क्षेत्र अवध के नवाब के पास आया जिसे सन् 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ले लिया। भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम में जनपद ने अविस्मरणीय योग दिया। आज़ादी की लड़ाई के समय सर सैय्यद अहमद खाँ यहीं पर कार्यरत थे। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक श्तारीक सरकशी.ए.बिजनौर उस समय के इतिहास पर लिखा गया महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। ग्राम पैजनियां के चौधरी शिवचरण सिंह त्यागी 1896.1985 के माध्यम से उनके यहां प्रसिद्ध क्रांतिकारियों चंद्रशेखर आज़ाद, पं॰ रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्लाह खाँ, रोशनसिंह ने पैजनिया में शरण लेकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध क्रान्ति की ज्वाला को जलाये रखा। चौधरी चरण सिंह के साथ शिक्षा ग्रहण करने वाले बाबू लाखन सिंह ढाका ने आजादी की लड़ाई में अपनी आखिरी साँस तक लगा दी