रिपोर्ट - मुरादाबाद/उत्तर प्रदेश (मनोज पाल)
कुछ मामलों में प्रेमियों के खिलाफ की जाने वाले पुलिस उत्पीड़न से प्रेमी युगल टूट जाते हैं। अक्सर परिजनों के दबाव अथवा बहकावे में दिए गए बयान प्रेमियों के बीच दूरी बना देते हैं। अब न्यायालय ने प्रेमियों की सुध ली है और उनके पक्ष में फैसला सुनाया है। इस फैसले के तहत यदि प्रेमिका मुकदमे मे प्रेमी के पक्ष में बयान देती है तो चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकेगी। उच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत सभी पुलिस कप्तानों को इस आदेश को अमल में लाने के निर्देश दिए गए हैं।
न्यायाधीश डीके उपाध्याय एवं DK सिंह की बेंच ने 28 मार्च को एक ऐसे ही मामले की सुनवाई में पाया की अपहरण व पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों में मेडिकल जांच में युवती के बालिग पाए जाने और प्रेमी के साथ अपनी मर्जी से जाने के मामले में भी पुलिस चार्जशीट दाखिल कर देती है।
उपरोक्त मामले की सुनवाई के तहत उच्च न्यायालय ने इसे गलत माना और कहा कि जिन मामलों में युवती बालिग है और अपनी मर्जी से जाने की बात स्वीकार कर रही है। ऐसे मामलों में चार्जशीट दाखिल करने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। इस मामले में अदालत में याचिका डालकर अयोध्या नारी संरक्षण गृह में बंद एक किशोरी को रिहा करने की मांग की गई थी। किशोरी के पिता ने अपने गांव के ही एक युवक को आरोपित किया था कि वह उनकी बेटी को बहला-फुसलाकर साथ ले गया है। किशोरी ने अपनी मर्जी से प्रेमी के साथ जाने की बात स्वीकार की थी। फिर भी पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी थी। युवती ना प्रेमी के साथ जा सकी थी और ना ही अपने माता-पिता के साथ रहना चाहती थी। उसे नारी संरक्षण गृह भेज दिया गया था। उच्च न्यायालय ने इस मामले में दोबारा जांच के आदेश दिए हैं।
एसएसपी मुरादाबाद जय रविंद्र गौड़ ने बताया कि प्रतिमा ऐसे लगभग 20 मामले दर्ज हो रहे हैं। इन मामलों की जांच की जा रही है। ऐसे मामलों में पुलिस चार्जशीट दाखिल ना कर फाइनल रिपोर्ट लगा मामले को समाप्त कर देती है।
कुछ मामलों में प्रेमियों के खिलाफ की जाने वाले पुलिस उत्पीड़न से प्रेमी युगल टूट जाते हैं। अक्सर परिजनों के दबाव अथवा बहकावे में दिए गए बयान प्रेमियों के बीच दूरी बना देते हैं। अब न्यायालय ने प्रेमियों की सुध ली है और उनके पक्ष में फैसला सुनाया है। इस फैसले के तहत यदि प्रेमिका मुकदमे मे प्रेमी के पक्ष में बयान देती है तो चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकेगी। उच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत सभी पुलिस कप्तानों को इस आदेश को अमल में लाने के निर्देश दिए गए हैं।
न्यायाधीश डीके उपाध्याय एवं DK सिंह की बेंच ने 28 मार्च को एक ऐसे ही मामले की सुनवाई में पाया की अपहरण व पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों में मेडिकल जांच में युवती के बालिग पाए जाने और प्रेमी के साथ अपनी मर्जी से जाने के मामले में भी पुलिस चार्जशीट दाखिल कर देती है।
उपरोक्त मामले की सुनवाई के तहत उच्च न्यायालय ने इसे गलत माना और कहा कि जिन मामलों में युवती बालिग है और अपनी मर्जी से जाने की बात स्वीकार कर रही है। ऐसे मामलों में चार्जशीट दाखिल करने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। इस मामले में अदालत में याचिका डालकर अयोध्या नारी संरक्षण गृह में बंद एक किशोरी को रिहा करने की मांग की गई थी। किशोरी के पिता ने अपने गांव के ही एक युवक को आरोपित किया था कि वह उनकी बेटी को बहला-फुसलाकर साथ ले गया है। किशोरी ने अपनी मर्जी से प्रेमी के साथ जाने की बात स्वीकार की थी। फिर भी पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी थी। युवती ना प्रेमी के साथ जा सकी थी और ना ही अपने माता-पिता के साथ रहना चाहती थी। उसे नारी संरक्षण गृह भेज दिया गया था। उच्च न्यायालय ने इस मामले में दोबारा जांच के आदेश दिए हैं।
एसएसपी मुरादाबाद जय रविंद्र गौड़ ने बताया कि प्रतिमा ऐसे लगभग 20 मामले दर्ज हो रहे हैं। इन मामलों की जांच की जा रही है। ऐसे मामलों में पुलिस चार्जशीट दाखिल ना कर फाइनल रिपोर्ट लगा मामले को समाप्त कर देती है।
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Distt. Moradabad News
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